सड़क चलते रहे हैं सब
तुम्हारी छाती पर पैर रख कर
और जाते रहे हैं पार
पाते रहे हैं मंजिल
पर तुमने कुछ न खाया, न चाहा।
लोग कहते हैं तुम चेतनाविहीन हो
तकती हो बस शून्य
परन्तु हर मौसम में मैंने देखा है
कभी ठिठुरते, कभी तपते, कभी बहते हुये तुम्हें।
हर ठोकर के बाद तुमने गले लगाया
ठोकर तुम भी खाती रही
पर कभी कोई 'सदा' तुमने नहीं दी
सोचा 'अपने' हैं।
सड़क वो आज इधर से नहीं गुजरेंगे
उन्होंने बदल ली है अपनी राह
पर तुम ना बदली
जहां थी जैसी थी, वहीँ हो वैसी ही हो
सड़क सच में तुम जिनका कोई नहीं उनकी माँ हो।
तुम्हारी छाती पर पैर रख कर
और जाते रहे हैं पार
पाते रहे हैं मंजिल
पर तुमने कुछ न खाया, न चाहा।
लोग कहते हैं तुम चेतनाविहीन हो
तकती हो बस शून्य
परन्तु हर मौसम में मैंने देखा है
कभी ठिठुरते, कभी तपते, कभी बहते हुये तुम्हें।
हर ठोकर के बाद तुमने गले लगाया
ठोकर तुम भी खाती रही
पर कभी कोई 'सदा' तुमने नहीं दी
सोचा 'अपने' हैं।
सड़क वो आज इधर से नहीं गुजरेंगे
उन्होंने बदल ली है अपनी राह
पर तुम ना बदली
जहां थी जैसी थी, वहीँ हो वैसी ही हो
सड़क सच में तुम जिनका कोई नहीं उनकी माँ हो।