अकंटक हो पथ, पुलकित होता हर पल
तो क्यो टूटता दल, क्योकर बनता जल?
रोशनी होती नभ की पहचान
तो क्यो सूरज छुपता
अंधेरा होता बस अवरोधक
तो क्यो आते तारे
क्यो चाँद उगता
जीवन के दो पहलू
सुख और दुख
करले आलिगन इनका
होकर उन्मुख
पुरूषार्थ का थाम दामन
झुका ले आकाश
देकर आहुति स्वयं की
बन तू प्रकाश
तो क्यो टूटता दल, क्योकर बनता जल?
रोशनी होती नभ की पहचान
तो क्यो सूरज छुपता
अंधेरा होता बस अवरोधक
तो क्यो आते तारे
क्यो चाँद उगता
जीवन के दो पहलू
सुख और दुख
करले आलिगन इनका
होकर उन्मुख
पुरूषार्थ का थाम दामन
झुका ले आकाश
देकर आहुति स्वयं की
बन तू प्रकाश