Tuesday 7 October 2014

मुफलिसी


क्या कहूँ, क्या बताऊँ 
कैसे करूँ दुख अभिव्यक्त
रूदन हर कोने जाने किसका
है हर वक्त

आसमाँ तले जिन्दगानियाँ यों पले
जैसे खुशियाँ
हो चुकी जब्त

साँसो की खातिर दौड़ते लोग 
थमी धड़कने
आहिस्ता आहिस्ता
बहता रक्त

मुफलिसी पलको तले आ पसरी
बन अंधेरा
होने लगी अब तो
नींद भी पस्त।

   "एकला" 

5 comments:

  1. गहरी अनुभूति की अभिव्यक्ति !

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  2. एक लम्बी नींद की आगोश में जाने से पहले न आने वाली नींद की सबब है मुफलिसी ........

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  3. Gahan va gambheer va marmsparshi rachna ... Vakayi km shabdo me dikhta bda masla ... Lajawaab !!

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  4. गहरा अभिशाप है मुफलिसी ... पर हिम्मत हो तो पार पाया भी जा सकता है ...
    भावपूर्ण ...

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  5. भावपूर्ण रचना।हृदय स्पर्श कर जाते हैं शब्द।
    आमीन।

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