Friday 17 October 2014

छू लूँ बिटिया पाँव तेरे

                                                                      
तेरे माथे को चुम लूँ     
या छू लूँ बिटिया पाँव तेरे
जो हो चली
तुम जननी
सभ्यता की

तेरे न होने से

सिमट रहा मै
जिस भाव मे
अभागा हो चला
या पा लिया सब कुछ मैंने

खेली हो तुम

मेरी हँसी मेरी नजर मे
और  रह चली                

आँखो मे मेरी

नेत्रज्योति बन

अब क्या देख पाऊँगा

बिन तेरे कुछ भी मैं
पर अब ना झपकेगी
ये पलक कभी
कि बिटिया मेरी
बन चली स्रोत संयम का
और बह रही
प्रकाश बन।


हो ही लू सजदा

तेरे आगे
कि छू न सकी तुम्हें
प्रदुषित उद्घघोषणा कोई
तुम चलो बिटिया
पथप्रदर्शक बन मेरी
आ ही रहे है पापा
पीछे पीछे तुम्हारे।

'एकला'


7 comments:

  1. Saarthak va prabhaawi aabhivyati behad sunder

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  2. दिल को छूते हुए भाव ... सुन्दर रचना ...
    दीपावली की हार्दिक बधाई ...

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  3. सुंदर भावों से सजी उत्तम रचना।

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  4. दिल को छूते हुए भाव

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  5. पिता द्वारा अपनी लाडली को स्वयं से रूक्सत करते वक्त अपने भावों को अभिव्यक्त करना ,जो अब तक अपने मन में संजोए हुए थे।
    सब बयाँ कर दिया आपकी भावपूर्ण रचना ने।
    बेहद खूबसूरत।

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