सुना है तुम कहती थी
तुमने प्यार किया
एक नारी अपूर्ण है
पुरूष बिना
तुम्हारा प्रेम।
तुम कहती थी
कि तुम्हारी राखी ने
भाई को कोई
जख्म ना दिया
क्योंकि थामना था तुम्हें
हाथ जीवनसाथी का।
सुना है बाबू जी की इज्जत
दुश्मन बन बैठी थी
तुम्हारे प्यार की
क्योंकि दी जाती थी
हर बार उसकी दुहाई।
सुना है कि
माँ के आसुओ से
गलने लगे थे
सपने तुम्हारे।
पर आज मैंने देखा है
नहीं जानती तुम
प्यार क्या होता है
तभी मैं
रोता, चिल्लाता रहा
कचरे के ढेर पर पड़ा
पर ना रूके तुम्हारे कदम
ना देखा तुमने मुझे
मुड़कर एक बार।
अब क्या रह गया था
जो लगने लगा तुम्हें
प्यार और ममता से प्यारा
और छोड़ चली तुम
सर्द रात मे
कुतो के बीच
लपेट कर कपडो मे माँ ।
दे ना जवाब
तुम्हें माँ कहूँ या ना??
एकला
एकला
Bahut gahre bhaaw hai aapki rachna ke...lajawaab ekdum!!
ReplyDelete....बहुत गहन भाव और उनकी प्रभावी अभिव्यक्ति...रचना अंतस को छू जाती है...
ReplyDeleteमार्मिक ... नम कर जाते शब्द ...
ReplyDeleteएक एक शब्द में सच्चाई झलक रही है आपकी रचना में ।
ReplyDeleteऔर हुआ भी यह इस बाल दिवस पर।
इस प्यार को क्या नाम दूँ ?
माँ।।