Saturday, 31 January 2015

स्थिर

मौसम का क्या उसे तो बदलना है
सूरज का क्या उसे तो ढलना है
ये हवा भी ठहर जानी है
              फूलों को खिल कर बिखरना है
              ये चाँदनियाँ भी तो छुप जानी है
टूटने हैं सितारे
 कौन सागर ? जाने कैसे किनारे
उल्काएं भी तो खंडित हो जानी हैं
                  बादलों के आलिंगन से
                  अभिभूत नाग बिन आवाज 
    हर राग भी छलनी हो जानी है
इंतजार तो वक्त का पहलू है
पर मेरा प्यार नहीं
सब क्षणभंगुर
पर मेरा संसार नहीं
               स्थिर-स्थिर-स्थिर 
               यही भाव बस मेरा
                समय से दूर
                जहां न प्रकाश न अंधेरा ।
"एकला"