Tuesday 11 November 2014

गम मुस्कुराने लगे हैं

गुनगुनाने लगे हैं गम
दर्द भी
साज सजाने लगे हैं

बुँदे बरसने लगी
आँखों से
बिखरे सपने
इन्द्रधनुष बनाने लगे हैं

गाता जा रहा लम्हा
पल शोर मचाने लगे हैं

बदल गई हर हवा
सूखे पत्ते
कहानी सुनाने लगे हैं

फिर एकला
अपनों की भीड़ मे
बिछुडे याद आने लगे हैं 

ढूँढता बहाने
खुशियों के मैं
कि गम
मुस्कुराने लगे हैं।

    'एकला'

5 comments:

  1. बहुत ही बढिया

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  2. behD achI rchnA..gM b muskuranE lgE h....ptA h aapkO...kL m b likhI eK poeM..

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  3. बहुत खूब .. गम हमेशा मुस्कुराते हैं .. कुछ होते हैं कुछ दिखाते हैं ...

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  4. दिल को छूती बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...लाज़वाब

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