Wednesday 5 November 2014

मरू जीवन मेरा

मरू जीवन मेरा
तपन ख्यालो की
है खामोशी का डेरा
नागभनी सी उभरे यादें
मनावे मातम घनेरा
शीतलता की आश नही
छाँव चली दूर कही
डसे काली शाम
लू लावे सवेरा
उड़ उड़ आती
स्वप्न धूल
चुभोये हृदय मे शूल
सूखी आँखें ढूँढे शून्य मे
कोई सावन भलेरा
आह! कल का जमाना
आज तिनका आशियाना
तन्हाई की शाखाओं पर
पाये अपना बसेरा
मरू जीवन मेरा
तपन ख्यालो की
है खामोशी का डेरा ।

एकला

4 comments:

  1. सुंदर !! मंगलकामनाएं आपको

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  2. Behad lajawaab..shuruaal ki pantiyaan ki shandaar hai kavita me bhAw utAar deti hain .... !! Lajawaab abhivyakti Anil ji ...

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  3. वैसे तो हर एक पंक्ति में यादों का समावेश है जो जीवन के उतार चढ़ाव का वर्णन कर रही हैं।
    लेकिन "आह!"शब्द जोङ और ज्यादा निखार दिया आपने।मार्मिक शब्द।मन को छू जाते हैं।




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  4. मार्मिक शब्दों के साथ मन को छूती रचना

    Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर दूर दूर तक अपनी दृष्टि दौड़ाती सुनहरी धुप :)

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