स्वागतम् स्वागतम्
नव वर्ष तेरा
पुनः स्वागतम्
पसरा है पौष
ठिठुरे-ठिठुरे स्वप्न
धुंधले-धुंधले से
ओढ़े हुए ओस
धुंधले-धुंधले से
ओढ़े हुए ओस
वहीं सुबह वहीं सूरज
ये उमंग ये उल्लास
कितनी सार्थकता
इनमे समाहित?
हर गुजरा पल
करता चला अहसास
छूटे है पटाखे
अर्द्धरात्रि मे
हर्षोध्वनि के साथ
कि नंगी सी गरीबी
पसरी है अब भी
आसपास
हो उठी व्यथित
फुटपाथ पर
जो जिन्दगी है पड़ी
जब कोशिश
फटे कम्बल की
भूख मे है जकड़ी
नींद मे स्वर्ग वासी
हो चले थे कुछ क्षण
बनी थी रोटियाँ
बिन कर कुछ कण
छीना कणों का सुकून
किसी हर्षोल्लास ने
डाला नींद मे विघ्न
छत वालो के
विलास ने
और यों जीती मरती कहानियाँ
कही बचपन कही बुढापा
और न जाने
कितनी जिन्दगानियाँ।
'एकला'
जीवन इन्हीं विरोधाभासों का नाम है ...नये वर्ष की शुभकामनायें..
ReplyDeleteसुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteनव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाए बोले तो बेहद वाली।
नए साल के शुरुआती दिन में आपके उज्जवल भविष्य एवं सुन्दर स्वपन के पूरा होने के लिए दिल से दुआए।
Very nice post ..
ReplyDeleteजल्दी ही एक हिन्दी ब्लॉग का निर्माण...
Jeewantips