Wednesday 31 December 2014

नव वर्ष तेरा पुनः स्वागतम्

स्वागतम् स्वागतम्
नव वर्ष तेरा 
पुनः स्वागतम्
पसरा है पौष 
ठिठुरे-ठिठुरे स्वप्न 
धुंधले-धुंधले से 
ओढ़े हुए ओस 
वहीं सुबह वहीं सूरज
       और 
ये उमंग ये  उल्लास
कितनी सार्थकता
इनमे समाहित?
हर गुजरा पल
करता चला अहसास
छूटे है पटाखे
अर्द्धरात्रि मे
हर्षोध्वनि के साथ
कि नंगी सी गरीबी
पसरी है अब भी
आसपास
हो उठी व्यथित
फुटपाथ पर 
जो जिन्दगी है पड़ी 
जब कोशिश
फटे कम्बल की
भूख मे है जकड़ी
नींद मे स्वर्ग वासी 
हो चले थे कुछ क्षण
बनी थी रोटियाँ
बिन कर कुछ कण
छीना कणों का सुकून
किसी हर्षोल्लास ने
डाला नींद मे विघ्न
छत वालो के
विलास ने
और यों जीती मरती कहानियाँ
कही बचपन कही बुढापा
और न जाने
कितनी जिन्दगानियाँ।

         'एकला'

3 comments:

  1. जीवन इन्हीं विरोधाभासों का नाम है ...नये वर्ष की शुभकामनायें..

    ReplyDelete
  2. सुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाए बोले तो बेहद वाली।
    नए साल के शुरुआती दिन में आपके उज्जवल भविष्य एवं सुन्दर स्वपन के पूरा होने के लिए दिल से दुआए।

    ReplyDelete
  3. Very nice post ..
    जल्दी ही एक हिन्दी ब्लॉग का निर्माण...
    Jeewantips

    ReplyDelete