बूँद बूँद आशाएँ
टूटती टपकती रही
जीवन व्योम से
रलती मिलती रही
मन मरूस्थल से
और हो चली एकमेक
समय की वायु से
हुआ अपरदन
दिखने लगी खण्डित सतह
निष्ठुर प्रकृति का
फिर हुआ कहर
हुआ जल अपरदन
नयनो से
और बह चली
पहुँची दुखो के समुद्र मे।
जमता चला गया जहां अवसाद
कभी भूत कभी वर्तमान का।
तिनका तिनका
चिड़िया गान से
हुई उमंग संचारित
और दी अवशेषों ने दिशा
युग निर्माण की।
एकला
तिनका तिनका
ReplyDeleteचिड़िया गान से
हुई उमंग संचारित
और दी अवशेषों ने दिशा
युग निर्माण की।
आशा और विश्वास के स्वर !
समय की कौन क्या जाने जाने..कब क्या देना है उसे. हाँ आशा है तो निर्माण के बीज है. अलग सी...सुन्दर रचना.
ReplyDeleteशुरूआत शुन्य से ही होती है।सुना है अंधेरे को चीरने के लिए जरा-सी चिंगारी काफी है।
ReplyDeleteगर आशाएं मन में हैं तो उसे पाने की उमंग और विश्वास स्वयं राह दिखा देते हैं।
बेहद सुंदर रूप दिया आपने अपने विचारों को,जो आपकी रचना से झलक रहा है।
निर्वाण और निर्माण .. दोनों ही तो प्रकृति के हाथ में है ... चिड़िया उन्हें उमंग से लेती है ... काढ मनुष्य भी ऐसा हो हो जाए ... सहज ...
ReplyDeletebahut hi umda.. badhyi is rachna k liye aapko....
ReplyDeleteवाह! बहुत ख़ूबसूरत एहसास पिरोये हैं आपने...
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