खिंचा चला जाता हूँ
होते ही भोर
होता एहसास पंछियो की
परवाज सा
और लगता जैसे
कर रहा स्पर्श मैं
उस अनहदनाद को
जो है किलकारियो मे समाहित
कर बेदखल
आसमाँ की नीरवता को।
ढेरों मिट्टी को
महल बनाते नन्हे हाथ
ढहने से भी
न होते निराश
समेट लाते फिर
कणों के पर्वत
अपनी झोली में
और देते ख्वाबो को
नया रूप।
बारिश के पानी की छपाक छपाक
देती गतिशीलता
ठहरे पाँव को
और चलते जाते
इत्ते इत्ते से कदम
कर दुर्गम राहो की
अवहेलना
कही जाति कही धर्म
तोड़ कर कुछ
झूठे भ्रम
लेकर मुस्कुराती जीत
मुठ्ठियो मे
थामकर हाथ से हाथ
बाँटते खुशी हाथों हाथ ।
ग्रन्थियो का अस्तित्व
हो जाता लुप्त
एक हँसी जब छूटती
आँसुओं के पीछे से
आलिंगन को
आतुर तो बहुत मै
पर कैसे जी लूँ फिर से
इस निश्छल भेंट को
जो दूर होती चली गयी
हर नये आज के साथ ।
एकला
होते ही भोर
होता एहसास पंछियो की
परवाज सा
और लगता जैसे
कर रहा स्पर्श मैं
उस अनहदनाद को
जो है किलकारियो मे समाहित
कर बेदखल
आसमाँ की नीरवता को।
ढेरों मिट्टी को
महल बनाते नन्हे हाथ
ढहने से भी
न होते निराश
समेट लाते फिर
कणों के पर्वत
अपनी झोली में
और देते ख्वाबो को
नया रूप।
बारिश के पानी की छपाक छपाक
देती गतिशीलता
ठहरे पाँव को
और चलते जाते
इत्ते इत्ते से कदम
कर दुर्गम राहो की
अवहेलना
कही जाति कही धर्म
तोड़ कर कुछ
झूठे भ्रम
लेकर मुस्कुराती जीत
मुठ्ठियो मे
थामकर हाथ से हाथ
बाँटते खुशी हाथों हाथ ।
ग्रन्थियो का अस्तित्व
हो जाता लुप्त
एक हँसी जब छूटती
आँसुओं के पीछे से
आलिंगन को
आतुर तो बहुत मै
पर कैसे जी लूँ फिर से
इस निश्छल भेंट को
जो दूर होती चली गयी
हर नये आज के साथ ।
एकला
बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteबहुत कोमल अहसास..
ReplyDeleteबहुत खूब ... बचपन पकडे नहीं पकड़ पाता इंसान ...
ReplyDeleteयही तो विडम्बना है जीवन की ... भावपूर्ण रचना ...
bahut sunder shabd chitran,. bachpan yaad dilàati.... bhawpurn
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