मरू जीवन मेरा
तपन ख्यालो की
है खामोशी का डेरा
नागभनी सी उभरे यादें
मनावे मातम घनेरा
शीतलता की आश नही
छाँव चली दूर कही
डसे काली शाम
लू लावे सवेरा
उड़ उड़ आती
स्वप्न धूल
चुभोये हृदय मे शूल
सूखी आँखें ढूँढे शून्य मे
कोई सावन भलेरा
आह! कल का जमाना
आज तिनका आशियाना
तन्हाई की शाखाओं पर
पाये अपना बसेरा
मरू जीवन मेरा
तपन ख्यालो की
है खामोशी का डेरा ।
एकला
तपन ख्यालो की
है खामोशी का डेरा
नागभनी सी उभरे यादें
मनावे मातम घनेरा
शीतलता की आश नही
छाँव चली दूर कही
डसे काली शाम
लू लावे सवेरा
उड़ उड़ आती
स्वप्न धूल
चुभोये हृदय मे शूल
सूखी आँखें ढूँढे शून्य मे
कोई सावन भलेरा
आह! कल का जमाना
आज तिनका आशियाना
तन्हाई की शाखाओं पर
पाये अपना बसेरा
मरू जीवन मेरा
तपन ख्यालो की
है खामोशी का डेरा ।
एकला
सुंदर !! मंगलकामनाएं आपको
ReplyDeleteBehad lajawaab..shuruaal ki pantiyaan ki shandaar hai kavita me bhAw utAar deti hain .... !! Lajawaab abhivyakti Anil ji ...
ReplyDeleteवैसे तो हर एक पंक्ति में यादों का समावेश है जो जीवन के उतार चढ़ाव का वर्णन कर रही हैं।
ReplyDeleteलेकिन "आह!"शब्द जोङ और ज्यादा निखार दिया आपने।मार्मिक शब्द।मन को छू जाते हैं।
मार्मिक शब्दों के साथ मन को छूती रचना
ReplyDeleteRecent Post शब्दों की मुस्कराहट पर दूर दूर तक अपनी दृष्टि दौड़ाती सुनहरी धुप :)